जैविक खेती या ऑर्गेनिक फार्मिंग एक जाना पहचाना नाम है आज अगर हम ऑर्गेनिक फार्मिंग की बात करें तो यह शुद्धता और स्वास्थ्य का प्रतीक माना जाता है । पर क्या आप जानते हैं कि हमारे पूर्वज हमेशा से ऑर्गेनिक फार्मिंग किया करते थे और इस कारण वह आज की इस पीढ़ी से बहुत ज्यादा स्वस्थ रहते थे। फिर धीरे-धीरे हम लोग अधिक उपज पैदा करने के लिए ऑर्गेनिक फार्मिंग से इन ऑर्गेनिक फार्मिंग की तरफ शिफ्ट हो गए । लगभग पिछले 30 वर्षों में अधिकांश खेती में रसायन का प्रयोग होने लगा, हमने अधिक पैदा करने की चाहत में अपनी जमीन व इस मानव प्रजाति को बीमार बना दिया । हम मानते हैं कि रसायनों के प्रयोग से कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई है परंतु उसका दूसरा पहलू यह भी है कि जो बीमारियां 30 से 40 वर्ष पूर्व उपलब्ध ही नहीं थी आज वह बीमारियां बहुत ज्यादा संख्या में लोगों को काल की ओर ढकेल रही हैं ।
संक्षिप्त में अगर बात करें तो ऑर्गेनिक फार्मिंग पशुओं का गोबर, मूत्र इत्यादि को इकट्ठा करके जमीन के लिए पोषक तत्वों की उपलब्ध कराना और फिर उसमें बीज बोकर फसलों का उत्पादन करना है । इसमें किसी भी प्रकार के रसायन का उपयोग नहीं किया जाता, न तो फसलों की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिए और न ही कीटनाशकों की रोकथाम के लिए । जैविक खेती के बारे में विस्तार से जानने के लिए नीचे दिए गए सभी पैराग्राफ का अध्ययन करें जो निम्न प्रकार है
जैविक खेती के अवयव (The components of Organic Farming)
Table of Contents
जैविक खेती परिचय (Definition of Organic Farming)
रासायनिक उर्वरकों , कीटनाशकों, व्याधि नासियों, और पशुओं के भोजन में किसी भी रसायन का प्रयोग ना करना बल्कि उचित फसल चक्र, फसल अवशेष, पशुओं का गोबर व मल मूत्र, दलहनी फसलों का समावेश और हरी खाद आदि द्वारा भूमि की उर्वरा शक्ति बनाए रखकर पौधों को पोषक तत्वों की उपलब्धता कराना है।
मिट्टी का चुनाव
जैविक खेती में हमारा सबसे पहला कार्य मिट्टी का चुनाव होता है क्योंकि फसलों की उर्वरताऔर गुणवत्ता मिट्टी के चुनाव और उसकी उपजाऊ शक्ति पर निर्भर करती है। मिट्टी हमेशा स्वस्थ और उपजाऊ ही होनी चाहिए । जिस खेत में हम जैविक खेती शुरू करने जा रहे हैं उस खेत की मिट्टी को हम अपने ब्लॉक में मृदा परीक्षण केंद्र पर ले जाकर परीक्षण भी करा सकते हैं उससे हमें मिट्टी की गुणवत्ता का सही सही अनुमान हो जाता है की इस विशेष खेत की मिट्टी में कौन-कौन से पोषक तत्व उपलब्ध हैं और किन किन पोषक तत्वों की कमी है। मिट्टी के साथ-साथ खेत का चुनाव करते हुए भी हमें विशेष सावधानी बरतनी चाहिए ,खेत के चारों ओर उपलब्ध अधिक छायादार वृक्ष जैसे कि पॉपुलर और सफेदा मिट्टी की गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं, खेत की नमी को सोख लेते हैं और फसलों के ऊपर सही प्रकार से धूप भी नहीं आने देते। मुख्यतः खेत के दक्षिण और पश्चिम दिशा में बड़े छायादार वृक्ष होने से फसलों के ऊपर प्रभाव अधिक होता है।
प्रजातियों का चुनाव
जैविक खेती में फसलों की प्रजातियों का चुनाव मुख्य भूमिका अदा करता है। प्रजातियों का चुनाव करते समय मुख्य फोकस इस चीज पर होना चाहिए कि जो प्रजाति हम प्रयोग करने जा रहे हैं वह देसी हो तो परिणाम ज्यादा अच्छे आते हैं। कुछ प्रजातियां जैविक खेती के लिए अधिक उपयुक्त होती हैं वहीं दूसरी तरफ कुछ प्रजातियां जैविक खेती के लिए बिल्कुल भी उपयुक्त नहीं होती। ऐसे में गलत प्रजाति का चुनाव किसानों को भारी नुकसान पहुंचा सकता है। हमें इसमें विशेष रूप से फसलों की रोग रोधी प्रजातियों का चयन करना चाहिए। फसलों की कुछ प्रजातियां ऐसी होती हैं जिनमें बहुत ज्यादा रोग आते हैं वह प्रजातियां जैविक खेती के लिए बहुत ज्यादा अच्छी नहीं होती और कुछ प्रजातियां ऐसी होती हैं जिनमें रोग या तो आते नहीं या फिर ना के बराबर आते हैं ऐसी प्रजातियों का चुनाव हमेशा लाभप्रद होता है।
जैविक खाद
जैविक खाद अनेक रूपों में उपलब्ध होता है जैसे गोबर का खाद ,कंपोस्ट खाद, वर्मी कंपोस्ट खाद, मुर्गी का खाद और पशुओं के नीचे बिछाए जाने वाली पराली या कोई दूसरा घास भी जैविक खाद के रूप में उपयोग होता है। जैसे गोबर गैस से निकलने वाले वेस्ट को हम खाद के रूप में यूज करते हैं । गोमूत्र का प्रयोग भी किया जा सकता है , पशुओं के सींग की खाद का उपयोग किया जा सकता है, हड्डियों का उपयोग भी किया जा सकता है। खेतों में पड़ी हुई लकड़ियों के सड़ने पर उनको भी जैविक खाद के रूप में उपयोग किया जा सकता है।
दलहनी फसल
दलहनी फसलों के अंतर्गत सभी दाल वाली फसलें आती हैं जैसे कि मूंग, उड़द, तूहर, चना इत्यादि। वर्ष में एक बार दलहन वाली फसलों की खेती जरूर करनी चाहिए इससे फसल चक्र बना रहता है और मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी कम नहीं होती। यह फसलें प्रोटीन और अमीनो अम्ल का सबसे सस्ता स्रोत होता है। अगर तकनीकी दृष्टि से बात करें तो दाल वाली फसलों की जड़ों में राइजोबियम नामक जीवाणु की गांठे होती हैं जो नाइट्रोजन स्थिरीकरण का काम करती हैं जिससे भूमि में पर्याप्त मात्रा में नाइट्रोजन उपलब्ध हो जाता है और यहअगली फसलों के लिए बहुत ही लाभकारी सिद्ध होता है ।
हरी खाद
हरि खाद मे एक तो दलहनी फसलों का प्रयोग होता है और दूसरा जैसे सन ढांचा आदि। इसमें यह फसलें बोकर कुछ दिन के लिए बड़ी की जाती हैं उसके बाद खड़ी फसलों को कृषि यंत्रों की सहायता से खेत में ही काट कर मिला दिया जाता है। यह कटी हुई फसलें जब ट्रैक्टर द्वारा मिट्टी में पूर्ण रूप से मिला दी जाती हैं तो फिर इनमें सड़न पैदा होती है जो मिट्टी में प्रयुक्त मात्रा में नाइट्रोजन की कमी को पूरा करती है। यह सभी फसलें अल्पावधि की होती हैं और यह बहुत ही कम समय में बड़ी हो जाती हैं। हरी खाद के रूप में प्रयोग की जाने वाली फसलों का चुनाव वह समय आगे बुवाई करने वाली फसलों के प्रकार पर निर्भर करता है। दलहन वाली फसलें उगाने से पहले हरी खाद वाली फसलों का प्रयोग नहीं करना चाहिए इससे समय की बर्बादी होती है। धान, गन्ना वह इत्यादि फसलों की बुवाई से पहले हरी खाद वाली फसलों की बुवाई करके व उनको जमीन में मिलाकर प्रयुक्त मात्रा में नाइट्रोजन प्राप्त की जा सकती है।
फसल अवशेष
फसल अवशेष किसान व सरकार दोनों के लिए एक बड़ी समस्या है कई बार किसान अपने खेत को जल्दी जल्दी तैयार करने के लिए फसलों के अवशेष को जला देते हैं जिससे कि वातावरण में प्रदूषण फैलता है विशेषकर पंजाब और हरियाणा मैं यह काम किया जाता है क्योंकि वहां फार्म बड़े लेवल के होते हैं। बहुत सारी ऐसी फसलें होती हैं जिनमें फसल अवशेष को समाप्त करना किसान के लिए भी एक चुनौती होता है परंतु इसके बहुत सारे विकल्प भी उपलब्ध हैं। अगर धान की फसल के अवशेष की बात की जाए तो इसकी पराली को इकट्ठा करके गत्ता फैक्ट्री या फिर दूसरी चीजों की मैन्युफैक्चरिंग में उपयोग किया जा सकता है परंतु किसान को अपने खेत तैयार करने की जल्दी होती है इसलिए वह इन विकल्पों को नहीं चुनता और फसल अवशेष को खेत में ही जला देता है। इसी प्रकार गन्ना वह कुछ दूसरी फसलों के अवशेष किसान के लिए कुछ हद तक समस्या उत्पन्न करते हैं परंतु अगर इन फसल अवशेषों को रोटावेटर की सहायता से कटिंग करके मिट्टी में मिला दिया जाए और फिर उसके बाद खेत में पानी लगा दिया जाए तो बहुत ही कम समय पश्चात यह अवशेष मिट्टी में मिल जाते हैं इससे किसान की समस्या का समाधान भी हो जाता है और मिट्टी को जैविक खाद के रूप में शक्ति भी प्राप्त होती है।
जैविक उर्वरक
जैविक उर्वरक मुख्य रूप से खेत की मिट्टी में कार्बन की मात्रा में सुधार करते हैं हालांकि किसान इसका उपयोग सही ढंग से नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि हर किसान को अपने खेत तैयार करने की जल्दी होती है। यह किसानों के लिए थोड़ा कॉस्टली भी पड़ता है परंतु इसके दूसरे विकल्पों पर भी विचार किया जा रहा है जो किसान को कम कीमत में उपलब्ध हो सकेंगे। जैविक उर्वरक को बनाने के लिए किसान को बहुत अधिक मेहनत करनी पड़ती है जिस कारण इसमें मजदूरी का खर्च भी ज्यादा आता है क्योंकि इसमें अधिकतम कार्य मैनुअली होता है। इस में आने वाले उर्वरक जैसे राइजोबियम, एजोस्पिरिलम, एजोला, हरित शैवाल, एजोटोबेक्टर आदि होते हैं।यह सभी वायुमंडल में उपस्थित नाइट्रोजन को पौधों में भेजते हैं इनमें एक होता है पीएसबी जो मृदा में घुलनशील वह घुलनशील फास्फोरस होती है यह उनको घुलनशील अवस्था में पौधों को उपलब्ध कराता है।
खरपतवार नियंत्रण
खरपतवार नियंत्रण के लिए गर्मियों में गहरी जुताई करनी चाहिए जिससे सूर्य की किरणों द्वारा सोलराइजेशन हो जाता है। दूसरा फसलों में उचित प्रबंधन का प्रयोग करके भी खरपतवार को नियंत्रित किया जा सकता है जैसा कि कोई फसल किस क्षेत्र में कितनी दूरी पर लगानी चाहिए पौधों के बीच की दूरी कितनी होनी चाहिए यह सब मैनेजमेंट खरपतवार को नियंत्रण करने में मदद करता है। जैविक खेती में मुख्य फसल बोने से पहले जो खरपतवार उगता है उसको उगने देते हैं और फिर उसको जुताई के माध्यम से नष्ट कर देते हैं जिससे उसकी फसलों में दोबारा पैदा होने की संभावना बहुत कम हो जाती है। खरपतवार को उगने देना और फिर उसे नष्ट करना वह भी मुख्य फसल बोने से पहले बहुत ही अच्छी विधि मानी जाती है खरपतवार को नष्ट करने की। इसमें जानबूझकर अवसर दिया जा सकता है खरपतवार को उगने का जैसे कि अगर मिट्टी सूखी है तो उसमें पानी लगा दें जिससे कि जो खरपतवार मिट्टी में उपलब्ध है वह उग जाएगा और उसको हम मुख्य फसल से पहले जुताई करके नष्ट कर देते हैं। एक दूसरा तरीका खरपतवार को नष्ट करने का यह है कि हम डिप सिंचाई मेथड को यूज कर सकते हैं इसमें पानी केवल पौधे की जड़ों में जाता है और आसपास की जमीन पर पानी ना मिलने की वजह से कोई खरपतवार नहीं उगता। यह भी एक बहुत अच्छी विधि है खरपतवार को नियंत्रण करने की, इसमें काफी हद तक खरपतवार का नियंत्रण हो जाता है।
कीट एवं रोग नियंत्रक
जैविक खेती में कीट और रोग को नियंत्रण करने के लिए कुछ अलग विधि यूज़ की जाती है जैसे कि आजकल नीम की निंबोली के पाउडर आ रहे हैं वह भी बहुत उपयोगी हैं कीट को नियंत्रण करने करने में । इसके अलावा कड़वी चीजें हैं जैसे करेले का पाउडर इत्यादि भी बहुत लाभकारी होता है रोग व कीट दोनों को नियंत्रण करने में।
जैविक खाद्य पदार्थों की विशेषताएं
- जैविक खाद्य पदार्थ बहुत ही एंटीऑक्सीडेंट होते हैं क्योंकि इन में कीटनाशक अवशेष नहीं होते, यह मनुष्य के शरीर के लिए बहुत फायदेमंद होते हैं ।
- जैविक फल व सब्जियों में बहुत ज्यादा एंटीऑक्सीडेंट होने की वजह से यह शरीर में उपस्थित डेड सेल्स को नष्ट कर देती है और स्वास्थ्य को बेहतर बनाती है।
- जैविक खाद पदार्थों में विषैले तत्वों का बिल्कुल भी प्रयोग नहीं होता या यूं कह सकते हैं कि जैविक खाद्य पदार्थ विषैले नहीं होते क्योंकि उनमें रसायन पदार्थों का बिल्कुल भी उपयोग नहीं होता है।
- सामान्य खाद्य पदार्थों की अपेक्षा जैविक खाद पदार्थों में अधिक मात्रा में पोषक तत्व पाए जाते हैं।
- जैविक खाद पदार्थों को लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है।
जैविक खाद पदार्थों के लिए भारतीय बाजार की उपलब्धता
अगर हम ताजा परिस्थितियों की बात करें तो भारतीय बाजार लगभग 2000 करोड रुपए से भी ज्यादा की ऑर्गेनिक फार्मिंग का टर्नओवर रखता है । और धीरे-धीरे यह बाजार अग्रणी पंक्ति में खड़ा होने के लिए तैयार है । बहुत सारे किसान भाई अब ऑर्गेनिक फार्मिंग की तरफ चल पड़े हैं बहुत सारे राज्य कैसे की मध्य प्रदेश महाराष्ट्र और राजस्थान मे पहले से ही ऑर्गेनिक फार्मिंग का बहुत बोलबाला है यहां तक कि असम पूर्ण रूप सेऑर्गेनिक स्टेट हो चुका है । परंतु अब जागरूकता बढ़ने के कारण बाकी राज्यों के किसान भी ऑर्गेनिक फार्मिंग की नई नई विधियो को अपना रहे हैं । आज की ताजा स्थिति यह है कि अगर कोई किसान भाई फल व सब्जियों का जैविक विधि से उत्पादन करता है तो बहुत सारी कंपनियां उससे संपर्क करने के लिए खेत में हीआ जाती हैं । एक बहुत अच्छी बात यह है कि भले ही ऑर्गेनिक फार्मिंग से उत्पाद कम मात्रा में निकलता हो पर जब उसके बेचने की बात आती है तो वह रासायनिक फल सब्जियों के मुकाबले 3 से 4 गुना ज्यादा दाम में बिकता है । आज बहुत सारी ऑनलाइन कंपनियां भी किसानों के ऑर्गेनिक उत्पाद को बढ़-चढ़कर खरीद रही है और किसान बहुत अच्छा मुनाफा ले पा रहे हैं । जैविक फसलों को उगाने के साथ-साथ अगर किसान उनकी मार्केटिंग पर थोड़ा भी ध्यान दे ले तो वह अच्छा मुनाफा कमाने के साथ-साथ एक ब्रांड वैल्यू के रूप में भी खुद को स्थापित कर सकता है ।
जैविक खेती के संदर्भ में भारतीय राज्यों की स्थिति
यहां पर हम आपको भारत के विभिन्न राज्यों के बारे में बताने जा रहे हैंकि किस राज्य में कितने प्रतिशतऑर्गेनिक फार्मिंग हो रही हैऔर किन- किन राज्यों ने ऑर्गेनिक फार्मिंग से संबंधित नियम बनाए हुए हैं।नीचे दी गई तालिका में आप भारत में विभिन्न राज्यों में अपनाई गई जैविक खेती पॉलिसी , इंफ्रास्ट्रक्चर प्रतिशत और बहुत सारी जानकारी प्राप्त कर सकते हैंजो निम्न प्रकार है
टेबल 1 :- राज्यवार जैविक खेती [1]
Conclusion निष्कर्ष
जलवायु परिवर्तन के लिए दुनिया भर में हुए अनेकों सम्मेलनों में से एक सम्मेलन जर्मनी में सन 2007 में हुआ । इस सम्मेलन की एक विशेषता यह भी थी कि यहां पर जलवायु के बदलाव को रोकने के लिए जैविक खेती पर बल दिया गया । पूरी दुनिया में लगभग 10 मिलियन टन पेट्रोकेमिकल्स का उपयोग डीएपी और यूरिया बनाने में होता है और इस निर्माण में लगभग 250 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड पैदा होती है जो जलवायु परिवर्तन में एक मुख्य भूमिका अदा करती हैं । इसके विपरीत अगर किसान जैविक खेती का उत्पादन करने लगे तो वहां पर दो तरीकों से कार्बन डाइऑक्साइड कम की जा सकती है पहला जैविक खेती में यूरिया व डीएपी प्रयोग नहीं होगा जिससे कि इसको बनाने में निकलने वाली कार्बन डाइऑक्साइड पैदा ही नहीं होगी और दूसरा जैविक खेती में हम खाद भी जैविक ही प्रयोग करते हैं जोकि लगभग 600 किलो तक कार्बन डाइऑक्साइड प्रति हेक्टेयर स्थापित करता है इसके अलावा और भी बहुत सारे प्रतिकूल प्रभाव को जैविक खेती के द्वारा रोका जा सकता है जैसे कि सूखा, अत्यधिक वर्षा और तापमान में तेजी के साथ बदलाव इत्यादि इत्यादि ।
ऊपर दिए गए सभी कारको को जैविक खेती में प्रयोग करते हुए हम अपने आज और आने वाले कल को संभाल सकते हैं और अपनी आगे आने वाली पीढ़ी को एक उज्जवल और निरोगी जीवन दे सकते हैं । जैविक खेती को मूल रूप से अपनाकर किसान खेती के रसायनों द्वारा जनमानस में होने वाली सभी खतरनाक बीमारियों से बचा सकते हैं । परिणाम सवरूप किसान जैविक खेती की केवल पैदावार की गिनती करता है तो हो सकता है कि उसे लाभ रसायनिक खेती के मुकाबले कुछ कम मिले लेकिन अगर सभी चीजों को जोड़ दिया जाए जैसे कि रसायनों पर होने वाला खर्च, रसायनों से पशुओं और मनुष्य में होने वाली बीमारी और फिर उसके इलाज में खर्च तो निश्चित तौर पर जैविक खेती एक फायदे का सौदा है ।
संदर्भ:-
- [1] भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार
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